• नरीमन सयानी गुम हुईं दो आवाज़ें

    90 साल के पार जाकर बुधवार को ऐसी दो महान शख्सियतें सदा के लिये ज़ुदा हो गईं, जिन्होंने अपनी आवाज़ों के दम पर लम्बे समय तक अपने-अपने कार्यक्षेत्रों को गुंजायमान किये रखा था।

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    90 साल के पार जाकर बुधवार को ऐसी दो महान शख्सियतें सदा के लिये ज़ुदा हो गईं, जिन्होंने अपनी आवाज़ों के दम पर लम्बे समय तक अपने-अपने कार्यक्षेत्रों को गुंजायमान किये रखा था। इनमें से एक हैं महान विधिवेत्ता फली सैम नरीमन जिन्होंने लगभग सात दशकों तक पहले बॉम्बे हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न न्यायाधीशों के समक्ष अनगिनत मामलों की सुनवाइयों के दौरान अपने कानूनी तर्कों को न जाने कितनी बार 'मी लॉर्ड' के सम्बोधनों के साथ पेश करते हुए अपनी प्रखर मेधा, प्रतिभा व तर्क क्षमता से सबको मंत्रमुग्ध किया, तो वहीं दूसरी तरफ भारतीय रेडियो के सबसे चहेते उद्घोषक अमीन सयानी भी इस जहां के अपने करोड़ों 'भाइयो और बहनो' को अलविदा कह गये। फली एस नरीमन के कहे शब्द यदि कानों से होकर बुद्धि को झकझोरते थे, तो अमीन सयानी की मधुमिश्रित आवाज़ कानों में पड़ते ही सीधे दिल का रास्ता पकड़ लेती थी। उनकी उम्र क्रमश: 91 तथा 95 वर्ष थी। दोनों ही भारतीयों के जीवन का अविभाज्य हिस्सा रहे- एक कानूनी किताबों के माध्यम से तो दूसरे रेडियो के जरिये।


    10 जनवरी, 1929 को तत्कालीन रंगून कहे जाने वाले और अब येंगून बन चुके म्यांमार (तब का बर्मा) में एक पारसी परिवार में जन्मे नरीमन ने स्कूली शिक्षा हिमाचल प्रदेश के शिमला से तथा अर्थशास्त्र के साथ बीए व कानून की शिक्षा मुंबई के प्रसिद्ध शिक्षण संस्थानों से पूरी की। बहुत कम उम्र में बाम्बे हाईकोर्ट से उन्होंने वकालत शुरू की और अल्प समय में ही उन्होंने कानून व संविधान सम्बन्धी अपने ज्ञान का लोहा मनवा लिया था। यहां 22 साल तक प्रेक्टिस करने के बाद बाद वे दिल्ली चले आये और जल्दी ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी अपनी धाक जमाई। 1971 में भारत सरकार के वे सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील रहे। फिर 1972 से 1975 तक अतिरिक्त लोक अभियोजक थे परन्तु आपातकाल लगाने के विरोध में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। बाद में 2011 से 2013 तक वे भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल रहे।


    पद्मभूषण व पद्म विभूषण से सम्मानित फली एस नरीमन ने अनेक महत्वपूर्ण व मील के पत्थर साबित हुए मुकदमों में अहम भूमिका निभाई थी। 1999 से 2005 तक वे राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिये नियुक्त किये गये थे। उनका काम केवल कोर्ट रूम तक ही सीमित नहीं था। अनेक तरह की राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं व संगठनों के वे प्रमुख भी रहे थे। उनकी आत्मकथा 'बिफोर मेमोरी फेड्स' काफी लोकप्रिय हुई थी जिसमें उन्होंने अपने वकालती पेशे के बाहरी-भीतरी पक्षों को उजागर किया है। उनके नाम पर विस मूट ईस्ट का 'फली नरीमन पुरस्कार' भी रखा गया है। भोपाल के कुख्यात गैस ट्रेजेडी में आरोपी कम्पनी यूनियन कार्बाइड का केस लड़ने पर आजन्म पछताने वाले नरीमन ने कहा था कि 'काश वे यह मामला हार जाते।Ó अपनी आत्मकथा में भी उन्होंने इस पर अफसोस जताया है। इस केस में उन्होंने यूनियन कार्बाइड तथा पीड़ितों के बीच कोर्ट के बाहर समझौते की पेशकश की थी और उन्हें एक बड़ा मुआवजा प्रस्तावित किया था।


    इसके बावजूद भारत के सेकुलर ताने-बाने के हमेशा पक्षधर रहे इस महान कानूनविद की लोकप्रियता व प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं आई थी। जिस कॉलेजियम सिस्टम के जरिये आज शीर्ष न्यायालय के चीफ जस्टिस की नियुक्ति होती है, उसे मान्यता 1993 के एक प्रसिद्ध मामले से मिली थी जो 'सेकेंड जज केस' के नाम से जाना जाता है। उनके लड़े गये मुकदमों की फेहरिस्त आखिर लम्बी क्यों न हो उन्होंने लगभग सात दशकों तक न्यायपालिका की सेवा की।


    उधर 21 दिसम्बर, 1932 को मुम्बई में जन्मे अमीन सयानी की आवाज भारत की सीमाएं लांघकर उन तमाम पड़ोसी देशों तक में सुनी जाती थी, जहां हिन्दी समझी व बोली जाती है। रेडियो सीलोन से प्रसारित होने वाला उनका कार्यक्रम 'बिनाका गीतमाला' दुनिया भर में सम्भवत: सर्वाधिक सुना जाने वाला कार्यक्रम था। ऐसे दौर में जब मनोरंजन के नाम पर आम लोगों के लिये केवल सिनेमा और रेडियो ही था- अमीन सयानी ने इन दोनों के सम्मिश्रण से यह अनूठा कार्यक्रम बनाया था। 3 दिसम्बर 1952 से प्रारम्भ हुआ बिनाका गीतमाला 1994 तक जारी रहा जिसमें हर हफ्ते रिलीज़ होने वाली हिन्दी फिल्मों के सर्वाधिक लोकप्रिय गानों की रैंकिंग की जाती थी। कभी पार्श्व गायक बनने की चाहत रखने वाले और पहले अंग्रेजी के उद्घोषक रहे अमीन सयानी को बिनाका गीतमाला का काम (पहले एक टूथपेस्ट के विज्ञापन के रूप में बनाते हुए) संयोगवश तथा उनके भाई के जोर देने पर मिला परन्तु उन्होंने उसे इस तरह बनाया और स्वयं को उसमें झोंक दिया कि बुधवार की शाम को 7 बजे जब वह 'भाइयो और बहनो, मैं आपका दोस्त अमीन सयानी...' के वाक्य के साथ प्रारम्भ होता और आधे घंटे तक प्रसारित होता था, तो देश में एक तरह से अघोषित कर्फ्यू लग जाता था। पूरा देश लाखों छोटे-बड़े रेडियो व ट्रांजिस्टरों के इर्द-गिर्द सिमट जाता था। इसकी लोकप्रियता का आलम यह था कि पहले 7 गाने और बाद में 16 गाने किस क्रम में हैं, अमीन सयानी की भाषा में कहें तो 'पायदान पर', बतलाते हुए अपने विशाल श्रोता वर्ग को सम्मोहित करते चले जाते थे। इस दौरान आने वाले तमाम लोकप्रिय गीतों की वे ईमानदारी से रैंकिंग करते रहे जबकि उनकी प्रभावित करने की ताकत इतनी जबरदस्त थी कि वे किसी भी गीत को चढ़ा या उतार सकते थे।

    हर साल दिसम्बर के अंतिम बुधवार को वे उन गानों को पेश करते थे, जो 25 हफ्तों तक रैंकिंग में रहे थे। 1986 में यह 'सिबाका गीतमाला' और उसके पहले कुछ समय 'हिट परेड' के नाम से भी प्रसारित होता रहा। हर हफ्ते उनके लिये 60 हजार से ज्यादा चि_ियां आती थीं। उन्होंने 54 हजार रेडियो कार्यक्रम तथा 19 हजार स्पॉट्स या जिंगल्स किये थे। बाद में इसके श्रोता वर्ग टेलीविज़न की तरफ मुड़ गये।
    फली एस नरीमन और अमीन सयानी की आवाजें अब अनंत में विलीन में हो गईं हैं- एक, जिस आवाज़ से कोर्टरूम ठहर जाते थे; और दूसरी, जिससे भारत ठहर जाता था।

     

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